तपती आंखो में कहां जीते हैं ख्वाब
धूप की जलन तो कहां पलते हैं ख्वाब

ख्वाहिशों की नर्म छांव में बैठे बैठे
आस टूट जाती है तो टूटते हैं ख्वाब

रूई के फाहे से हल्के हल्के गाले
आंधी चलती है तो उड़ते है ख्वाब

वो दे रहा है बातों बातों में वादे
धोखा देने को मुझे छलते हैं ख्वाब

सोच लिया था आभा मैने पहले से
ज़िंदा रहने को यहां कब मिलते है ख्वाब
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मोहब्बत यूँ ही किसी से हुआ नहीं करती
खुद को भूलना होता है किसी को अपना बनाने के लिए
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वैसे तो ठीक रहूँगा मैं उस से बिछड के फराज़
बस दिल की सोचता हूँ, धडकना छोड न दे
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कुछ मुहब्बत का नशा था पहले हमको फ़राज़
दिल जो टुटा तो नशे से मुहब्बत हो गई
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ऐसा डूबा हूँ तेरी याद के समंदर में फ़राज़
दिल का धड़कना भी अब तेरे कदमों की सदा लगती है
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बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये;
कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये;

करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला;
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये;

मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना;
ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये;

अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए;
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये;

गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा;
गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये;

तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो फ़राज़;
इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये।
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ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो;
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें;
अब न वो मैं हूं न तू है न वो माज़ी है फ़राज़
जैसे दो साये तमन्‍ना के सराबों में मिलें।

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बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गये;
कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये;

करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला;
यही है रस्म-ए-ज़माना तो हम भी अब के गये;

मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना;
ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये;

अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये;
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये;

गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा;
गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये;

तुम अपनी शम-ए-तमन्ना को रो रहे हो फ़राज़;
इन आँधियों मे तो प्यार-ए-चिराग सब के गये।

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तुम मुझे रूह में बसा लो फराज़,
दिल-ओ-जान के रिशते तो अकसर टूट जाया करते हैं
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ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे​;​
​तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे​;​​​
​​​​अपने ही साये से हर कदम लरज़ जाता हूँ​;​
​रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे​;​
​​​​कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे​;​
​याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे​;​
​​मंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैं​;​
​अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे​;​
​​​​आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं फ़राज़​;
​चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
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कभी टूटा नहीं मेरे दिल से आपकी याद का तिलिस्म फ़राज़
गुफ़्तगू जिससे भी हो ख्याल आपका रहता है
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सवाब समझ कर वो दिल के टुकड़े करता है फ़राज़
गुनाह समझ कर हम उन से गिला नहीं करते
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