अपने ही होते हैं जो दिल पे वार करते हैं फ़राज़
वरना गैरों को क्या ख़बर की दिल की जगह कौन सी है
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कांच की तरह होते हैं गरीबों के दिल फ़राज़
कभी टूट जाते हैं तो कभी तोड़ दिए जाते हैं
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यूँ तुझे ढूँढने निकले की ना आये खुद भी,
वो मुसाफ़िर की जो मंजिल थे बजाये खुद भी,
कितने ग़म थे की ज़माने से छुपा रक्खे थे,
इस तरह से की हमें याद ना आये खुद भी,
ऐसा ज़ालिम की अगर ज़िक्र में उसके कोई ज़ुल्म,
हमसे रह जाए तो वो याद दिलाये ख़ुद भी,
लुत्फ़ तो जब है ताल्लुक में की वो शहर-ए-जमाल,
कभी खींचे, कभी खींचता चला आये खुद भी,
ऐसा साक़ी हो तो फिर देखिये रंग-ए-महफ़िल,
सबको मदहोश करे होश से जाए खुद भी,
यार से हमको तग़ाफ़ुल का गिला क्यूँ हो के हम,
बारहाँ महफ़िल-ए-जानां से उठ आये खुद भी

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जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना,
मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना,
ये शोलगी हो बदन की तो क्या किया जाये,
सो लाजमी है तेरे पैरहन का जल जाना,
तुम्हीं करो कोई दरमाँ, ये वक्त आ पहुँचा,
कि अब तो चारागरों का भी हाथ मल जाना,
अभी अभी जो जुदाई की शाम आई थी,
हमें अजीब लगा ज़िन्दगी का ढल जाना,
सजी सजाई हुई मौत ज़िन्दगी तो नहीं,
मुअर्रिखों ने मकाबिर को भी महल जाना,
ये क्या कि तू भी इसी साअते-जवाल में है,
कि जिस तरह है सभी सूरजों को ढल जाना,
हर इक इश्क के बाद और उसके इश्क के बाद,
फ़राज़ इतना आसाँ भी ना था संभल जाना..
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दिल के रिश्तों कि नज़ाक़त वो क्या जाने फ़राज़
नर्म लफ़्ज़ों से भी लग जाती हैं चोटें अक्सर
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जब भी दिल खोल के रोए होंगे,
लोग आराम से सोए होंगे
वो सफ़ीने जिन्हें तूफ़ाँ न मिले,
नाख़ुदाओं ने डुबोए होंगे
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दुनिया में मत ढूंढ नाम ए वफ़ा फ़राज़;
दिलों से खेलते हैं लोग बना के हमसफ़र अपना।
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इतनी सी बात पे दिल की धड़कन रुक गई फ़राज़
एक पल जो तसव्वुर किया तेरे बिना जीने का
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कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो;
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो;

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है;
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो;

नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं;
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो;

ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है;
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो;

तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है;
फ़राज़ तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
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वो जो मिल गया था अचानक किस्मत से
बिना मिले ही बिछड़ गया मुझसे
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जिसको भी चाहा उसे शिद्दत से चाहा है फ़राज़;
सिलसिला टूटा नहीं है दर्द की ज़ंजीर का।

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मोहब्बत छोड़ तो दी उसने मगर पहचान इतनी बाकी है
जब भी मिलता है निगाहें फेर लेता है..
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